अगस्त में खाद्य तेल आयात का बना रिकार्ड, किसानों के हितों की अनदेखी कर रही सरकार
पिछले दो दिनों में सरसों के भाव में उम्मीद के मुताबिक तेजी देखने को नहीं मिली है। हालांकि ज्यादा कमजोरी नहीं आई है, लेकिन जिस तरह का तेजी का सेंटिमेंट देखने को मिला वैसा कुछ नहीं था। हम जानते हैं कि कुछ किसान साथी सोच रहे होंगे कि आगे उछाल नहीं आने वाला है, लेकिन यह कहना उतना ही मुश्किल है कि आगे उछाल आएगा।
सठियो मंडी भाव टुडे ने पहले भी खबर दी थी कि अगर सरकार कोई अड़ंगा नहीं लगाती है तो ही सरसों के दाम में उछाल आ सकता है. लेकिन सरकार किसान के हितों को दांव पर लगाकर बहुत ही सशक्त तरीके से आयात बढ़ा रही है, जिससे सरसों को मजबूती नहीं मिल पा रही है।
सरकार को किसानों की कितनी चिंता
अगस्त 2023 का महीना तेल आयात के लिहाज से याद रखा जाना चाहिए। क्योंकि यह वह महीना है जिसमें भारत ने रिकॉर्ड 18.60 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया है। अगस्त 2023 के महीने में ऐसा हुआ है कि पहली बार भारतीय बंदरगाहों पर 14 लाख टन का रिकॉर्ड स्टॉक हुआ है।
अब आप खुद सोचिए जब जनता को सस्ता पाम और सोया तेल मिलेगा तो वह महंगा सरसों का तेल क्यों खरीदेगी। आयात बढ़ने से सरसों और सरसों तेल के दाम दबाव में आ रहे हैं। अगर सरकार आयात की रफ्तार जारी रखती है तो हो सकता है कि दिवाली तक भी आपको सरसों में 6500 का भाव न मिल पाए।
बाजार में क्या खबरें रही हावी
दोस्तों, बाजार सेंटिमेंट के हिसाब से चलता है। एक तरफ जहां मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका और चीन के बाजारों में पिछले दो दिनों में गिरावट देखने को मिली है। उधर, मौसम विभाग ने सितंबर के महीने में सामान्य बारिश होने की बात कही है। इससे सूखे की खबर से सरसों की कीमतों को मिला सपोर्ट भी कमजोर हुआ है।
इसी वजह से भारतीय बाजारों पर दबाव देखने को मिला है। यूक्रेन में लंबे समय से चल रहे युद्ध के साथ अब हालात ऐसे हो गए हैं कि वह सूरजमुखी के तेल की बिक्री की तरह अपने स्टॉक को सस्ता करके किसी भी कीमत पर बेचने को तैयार है।
गौरतलब है कि इतनी नकारात्मक खबरों के बावजूद सरसों के भाव में कोई खास गिरावट नहीं आई है। हालांकि, जो गति बनी थी, वह निश्चित रूप से हवा दार हो गई है। अब विदेशी बाजारों में सुधार ही बाजार को फिर से तेजी की दिशा में मोड़ सकता है।
ताजा मार्किट अपडेट
दोस्तों, बाजारों में कैसा माहौल है, इसकी कहानी बन गई है। अब बात करते हैं कि कल बाजारों में क्या हुआ। वैश्विक बाजार में खाद्य तेलों के दाम में गिरावट आने से मंगलवार को घरेलू बाजार में सरसों के भाव स्थिर रहे। जयपुर में कंडीशंड सरसों का भाव 5925 रुपये प्रति क्विंटल पर बना रहा।
हालांकि, भरतपुर में भाव 17 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट के साथ 5,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। दिल्ली लारेंस रोड पर सरसों का भाव 5600 रुपए, सुमेरपुर का 5485 रुपए, मुरैना का 5200 रुपए, खैरथल का 5550 रुपए, हिंडन का 5571 रुपए और गंगापुर का भाव 5570 रुपए प्रति क्विंटल दर्ज किया गया।
मंगलवार को सरसों की दैनिक आवक घटकर चार लाख बोरी रह गई। विश्व बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में लगातार दूसरे दिन गिरावट आई है। मलेशिया ई पाम तेल वायदा दूसरे दिन 2% से अधिक गिर गया, जबकि शिकागो में सोया तेल वायदा में भी गिरावट आई। खबर लिखे जाने तक मलेशिया और चीन में बाजार खुल चुके हैं और आज बाजार खाने के तेलों में करीब 1 फीसदी की तेजी दिखा रहे हैं।
तेल और खल रेट
घरेलू बाजार में भाव बढ़ने से कमजोर मांग के कारण सरसों तेल कीमतों में गिरावट आई, जबकि इस दौरान सरसों खली के भाव स्थिर हुए। जयपुर में सरसों तेल, कच्ची घानी और एक्सपेलर के भाव 10 – 10 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 1,083 रुपये और 1,073 रुपये प्रति 10 किलोग्राम रह गए। जयपुर में मंगलवार को सरसों खली का भाव 2920 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर रहा।
सरसों की आवक
देशभर की मंडियों में सरसों की दैनिक आवक मंगलवार को घटकर चार लाख बोरी रह गई, जबकि सोमवार को सरसों की आवक 4.40 लाख बोरी थी। कुल आवक में से राजस्थान की मंडियों में 2.15 लाख बोरी, मध्य प्रदेश की मंडियों में 30 हजार बोरी, उत्तर प्रदेश की मंडियों में 50 हजार बोरी, पंजाब और हरियाणा की मंडियों में 20 हजार बोरी, गुजरात में 10 हजार बोरी और अन्य राज्यों की मंडियों में 75 हजार बोरी की आवक हुई।
अब सरसों में आगे क्या
अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों के दाम को लेकर समय-समय पर माहौल बदलता रहता है। इस समय घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग और आपूर्ति के समीकरण को समझना थोड़ा मुश्किल हो गया है। क्योंकि इस समय तेल की कीमत मौसम की चाल पर निर्भर करती है। जाहिर है, कोई नहीं बता सकता कि अल नीनो की वजह से आगे बारिश होगी या सूखे के हालात होंगे।
अगर हम दूसरी बातों पर गौर करें तो इस बात की उम्मीद कम है कि सरसों के लिए सरकार की भूमिका भी अच्छी होगी। सरकार कुछ भी करके खाद्य तेलों में बड़ी तेजी नहीं आने देगी। यही कारण है कि खाद्य तेलों का इतने बड़े पैमाने पर आयात किया जा रहा है।
ऐसे में अब किसानों की उम्मीदें सिर्फ अंतरराष्ट्रीय बाजार और त्योहारी मांग से बंधी हैं। यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में सरसों में तेजी नहीं दिख सकती है, लेकिन लंबे समय में, भविष्य अभी भी उज्ज्वल दिखता है। अपने विवेक से व्यापार करें।
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